व्यख्यान माला है आयुष चिकित्सा के प्रति जागरूक करने का सही प्लेटफाॅर्म

जीवेम शरदः शतम् विषय पर आयोजित व्याख्यान माला सम्पन्न

इंदौर। आयुष मेडिकल वेलफेयर फाउण्डेशन द्वारा आयुष वेलनेस सेंटर पिपलियाहाना इंदौर पर जीवेम शरदः शतम विषय पर व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ द्विवेदी ने कहा कि, इस तरह की व्यख्यान माला निरन्तर जारी रखेंगे।

लोगो को आयुष चिकित्सा के लिए जागरूक करने का यही सही तरीका है। लोगो को लग रहा था कि जीवन बचेगा या नहीं, वर्ष 2020 जीवन बचाने का वर्ष था। वर्ष 2021 जीवन सँवारने का रहेगा। यदि हम लोग हानिरहित आयुष चिकित्सा को अपनायें तो जीवेम् शरदः शतम को हासिल कर सकते हैं।

डाॅ. भूपेन्द्र गौतम जी ने अपने मुख्य अतिथीय उद्बोधन में कहा कि, रोगों की उत्पत्ति की जड़ हमारी जीवनशैली का त्रुटिपूर्ण होना है। असंयमित आहार, कब्ज, रहन-सहन से लेकर मानसिक तनाव तथा दैवीय प्रतिकूलताओं व बैक्टीरिया-वायरस के कारण हमारी जीवनीशक्ति प्रभावित होती है।

प्राणशक्ति यदि मजबूत रहे व जीवनशैली सही रहे तो व्यक्ति को कभी कोई रोग सता नहीं सकते। पंचभूतों से बनी इस काया को जिसे अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है क्या हम पंचतत्त्वों आकाश, वायु, जल, मिट्टी, अग्नि के माध्यम से स्वस्थ बना सकते हैं। प्राकातिक चिकित्सा का यही सिद्धान्त है कि पंचतत्त्वों से ही रोगों को दूरकर अक्षुण्ण स्वास्थ्य प्राप्त किया जाय।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए आयुष मन्त्रालय, भारत सरकार में वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड के सदस्य डाॅ. ए.के. द्विवेदी ने कहा कि, स्वस्थ रहना मनुष्य का मौलिक अधिकार है और एक स्वाभाविक प्रक्रिया भी है। इसी आधार पर हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के लिए जीवेम शरदः शतम् व्यक्ति सौ वर्ष तक जिये, निरोग जीवन जीकर सौ वर्षों की आयुष्य का आनन्द लेने का सूत्र दिया था।

सौ वर्ष से भी अधिक जीने वाले, स्वास्थ्य के मौलिक सिद्धान्तों को जीवन में उतारने वाली अनेक विभूतियाँ कभी वसुधा पर हुआ करती थीं, जिसे एक सामान्य-सी बात माना जाता था। स्वस्थ वृत्त को जीवन में उतारने एवं सौ वर्षों तक जीकर सर्वस्व जीवन पूरा कर मोक्ष को प्राप्त होना, कभी हमारी संस्कृति का जीवनदर्शन था। लेकिन आज यह सब एक विलक्षणता मानी जाती हैं, जब सुनने में आता है कि किसी ने सौ वर्ष पार कर लिया व अभी भी निःरोग है।

विशेष अतिथि आयुर्वेदाचार्य डाॅ. ऋषभ जैन ने कहा कि, आर्युवेद का गौरव है वनौषधियाँ जिनमें समग्रता होती है। यदि यह विज्ञान घर-घर फैल सके तो हमारी ऐलोपैथी जैसी तेज असरकारक औषधियों पर निर्भरता समाप्त हो जायगी। घर में ही पायी जाने वाली, आँगन में उगायी जा सकने वाली औषधियों से जिन्हें हम मसालों के रूप में प्रयोग करते हैं, से अनेकानेक रोगों का उपचार किया जा सकता है।

जैसे- राई, हल्दी, अदरक, सौंफ, मेथी, जीरा, मिर्च, पुदीना, गिलोय, तुलसी, अजवाइन, धनिया, टमाटर, लहसुन, ग्वारपाठा, प्याज, आँवला ऐसी औषधियाँ हैं जो घर-घर हो सकती हैं, सूखी स्थिति में कुछ रखी भी जा सकती हैं। हींग, काला नमक, लौंग, दालचीनी, ऐसे हैं जिन्हें सुरक्षित रख विभिन्न रोगों में प्रयोग किया जा सकता है। चूँकि आज का मानव समाज कृत्रिम साधनों पर निर्भर है, जिससे हवा और पानी भी विषाक्त हो चुका हैं।

कार्यक्रम का संचालन डाॅ. जितेन्द्र पुरी जी ने किया, आभार डाॅ. विवेक शर्मा ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से सागर से आये अजय नीखरा, हाटपिपलिया देवास से कैलाश पटेल सहित राकेश यादव, दीपक उपाध्याय, सत्यनारायण नामदेव, सूरज नामदेव, विनय पाण्डेय, जितेन्द्र जायसवाल, रीना सिंह आदि उपस्थित थे।

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